इस्लाम में मांस खाने पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है, इस्लाम ने कुछ चुनिंदा जानवरों के मांस खाने की अनुमति दे रखी है। एक तरह से इस्लाम ने मांस खाने को जाएज़ ठहराया है, यानी अगर व्यक्ति की इच्छा है तो वह मांस खा सकता है। इसलिए अधिकतर मुसलमान मांसाहारी होते हैं।
लेकिन आपको बता दें कि इस्लाम उन चुनिंदा जानवरों के मांस खाने की अनुमति तब ही देता है, जब उनको हलाल तरीके से काटा गया हो। इस्लाम में जानवरों के ज़िबह करने यानी उनको काटने का एक विशेष तरीका बताया गया है, जिसको हलाल तरीका माना जाता है। यानी अगर इस्लाम में बताये गए तरीके से जानवर को काटा जाता है तो उसका मांस मुसलमान खा सकते हैं। इस्लाम में उन चुनिंदा जानवरों का मांस खाना हराम हो जाता है जिसकी अनुमति इस्लाम देता है, अगर वह किसी कारण खुद से मर गए हों, या उनको किसी अन्य तरीके से मारा गया हो तो ऐसे जानवर मुर्दार शुमार किये जाते हैं, जिनका मांस इस्लाम में हराम है।
उन जानवरों के मांस खाना भी हराम है, जिनको इलेक्ट्रिक स्टनिंग से मारा गया हो। इसलिए मुसलमान ऐसे मांस से परहेज़ करते हैं और वही मांस खाते हैं, जो हलाल तरीके से काटे गए जानवरों के होते हैं। हम इस मांस को हलाल मांस भी कह सकते हैं, जिसकी अनुमति इस्लाम देता है।
जैसा कि हमें पता है कि बाज़ार में बिकने वाले मांस का हमें पता नहीं होता है कि वह हलाल मांस हैं या नहीं? जानवर को किस तरह से काटा गया है इसका पता हमें नहीं होता है। तो ऐसे में मुसलामानों के लिए यह मुश्किल पैदा होती है कि वह अपने लिए हलाल मीट को कैसे चुनें और उनकी पहचान कैसे करें?
तो यह मुसलामानों के लिए बड़ी खुशखबरी होगी कि वैज्ञानिकों ने हलाल मांस की पहचान करने का तरीका खोज निकला है। जिससे मुस्लमान जान सकेंगे कि कौनसा मांस हलाल है और कौनसा हराम है।
हैदराबाद में 'नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट' (एनआरसीएम) के वैज्ञानिकों ने हलाल मीट की पहचान करने का तरीका खोज निकालने का दवा किया है।
एनआरसीएम के वैज्ञानिकों ने यह टेस्ट पहले भेड़ पर हलाल प्रक्रिया के द्वारा किया, जिसके बाद उन्होंने मीट के उस हिस्से की तुलना इलेक्ट्रिक स्टनिंग के ज़रिये निकाले गए भेड़ के मांस से की। वैज्ञानिकों ने इस टेस्ट के बाद पाया कि दोनों भेड़ों के मीट अलग-अलग हैं।
इसके अलावा वैज्ञानिकों ने बताया कि जब जानवरों को काटा जाता है, तो उनमें तनाव उत्पन्न होता है, इसके आधार पर भी मीट की पहचान की जा सकती है। उन्होंने बताया कि इस टेस्ट के बाद मारी गई दोनों भेड़ों के मीट में काफी अंतर है। उन्होंने बताया कि सूक्ष्म स्तर पर दोनों में काफी अंतर है।
अगर पहली भेड़ की बात करें जो कि हलाल की गई थी, उसके मीट में प्रोटीन विशेष का समूह पाया गया जबकि दूसरी भेड़ के मीट में ऐसा नहीं था। वैज्ञानिकों का दावा है कि हलाल मीट की पहचान करने के लिए यह दुनिया का सबसे पहला टेस्ट है। वैज्ञानिकों ने बताया कि रक्त जैव रासायनिक मानकों और प्रोटीन स्ट्रक्चर (प्रोटॉमिक प्रोफाइल) की जांच के आधार पर हलाल मीट की पहचान की जा सकती है। जांच के इस तरीके को 'डिफरेंस जेल इलेक्ट्रोफॉरेसिस' कहते हैं। इसकी बुनियाद पर दोनों मीट की मांसपेशियों की प्रोटीन में अंतर निकाला जा सकता है।
इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि जानवरों को काटने से पहले उनमें जो तनाव पैदा होता है उसके आधार पर भी मीट पहचान की जा सकती है।
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